शनिवार, 18 मई 2019

रेडियोसक्रिय क्षय Radioactive decays

किसी विशिष्ठ क्वाण्टम अवस्था (निम्नतम अवस्था में न्यूट्रॉनों (neutrons) और प्रोटॉनों की संख्या के साथ अपेक्षित गुणधर्मों द्वारा एक नाभिक के निर्माण के बाद यदि उन्हें विक्षुब्ध (disturbed) नहीं किया जाता है तो वो अनन्त काल तक उसी अवस्था में प्राप्त होंगे। यद्यपि इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के नाभिक भी पाये जाते हैं। अधिक बहुलता (numerous) वाले नाभिक अस्थायी हो जाते हैं। उनका स्वतः विघटन हो जाता है जिसमें वो बहुत उच्च ऊर्जा के कुछ कणिका (corpuscular) अथवा विद्युत्-चुम्बकीय विकिरण (electromagnetic radiation) उत्सर्जित करते हैं। प्रथम स्थिति में या तो परमाणु क्रमांक (atomic number) Z अथवा परमाणु द्रव्यमान संख्या (atomic mass number) A अथवा दोनों परिवर्तित होते हैं तथा एक नये नाभिक का निर्माण होता है। द्वितीय स्थिति में नाभिक का उच्च ऊर्जा स्तर से निम्न ऊर्जा स्तर अथवा एक क्वाण्टम अवस्था से अन्य क्वाण्टम अवस्था में संक्रमण (transition) होता है। नाभिक के इस तरह के स्वतः संक्रमण को रेडियोसक्रियता (radioactivity) कहते हैं। यह प्रथम प्रेक्षित नाभिकीय परिघटना (phenomenon) है। इसकी खोज का श्रेय फ्रांसीसी भौतिक विज्ञानी हेनरी बैकेरल (Henri Becquerel) को जाता है।
रदरफोर्ड (Rutherford) ने α-कणों की खोज प्राकृतिक रूप से प्राप्त घटक विकिरण (constituent radiation) के रूप में की तथा इसे 4He (Z=2) परमाणु के नाभिक के रूप में पहचाना। इन विकिरणों के अन्य घटक β-कण (उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन) तथा γ-किरण (बहुत कम तरंगदैर्घ्य वाली विद्युत्-चुम्बकीय विकिरण) हैं। प्रारम्भ में इन किरणों को माध्यम में इनके अवशोषण के आधार पर विभेदित (distinguish) किया गया। इसके बाद चुम्बकीय क्षेत्र में इनका अलग-अलग व्यवहार भी प्रेक्षित किया गया। चुम्बकीय क्षेत्र में α-किरणें बहुत कम विक्षेपित (deflect) हुई जबकि β-किरणें बहुत अधिक विक्षेपित हुई एवं γ-किरणें विक्षेपित नहीं हुई। α और β किरणों का चुम्बकीय क्षेत्र में विक्षेपित होने का कारण इनका द्रव्यमान कम होना प्रदर्शित करता है। सर्वप्रथम रदरफोर्ड और रोबिनसन (Robinson) ने α-कणों का आवेश-द्रव्यमान अनुपात (q/M ratio) ज्ञात किया। इसकी विधि कैथोड़ किरणों के लिए e/m मापन के समान थी।

अल्फा/एल्फा क्षय (Alpha decay)

अल्फा क्षय (Alpha decay) अथवा α-क्षय एक प्रकार का रेडियोसक्रिय क्षय है जिसमें परमाण्विक नाभिक एक अल्फा कण उत्सर्जित करता है तथा मूल परमाणु का नाभिक एक अन्य परमाणु में परिवर्तित हो जाता है। इस नये नाभिक के परमाणु संख्या में मूल नाभिक से 2 तथा परमाणु भार में 4 की कमी आती है। अल्फा कण में 2 न्यूट्रॉन तथा 2 प्रोटॉन होते हैं। उदाहरण के तौर पर–
238
92
U
 → 234
90
Th
 + 4
2
He



बीटा क्षय (Beta decay)

इस प्रक्रिया में परमाण्विय नाभिक एक बीटा कण उत्सरर्जित करता है जिसमें परमाणु भार में परिवर्तन नगण्य होता है। बीटा-क्षय को निम्नलिखित श्रेणियों में विभक्त किया जाता है*–

(i) इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन अथवा β--क्षय (Electron emission or β--decay)

इस क्षय में मूल नाभिक से एक β--कण (अथवा एक इलेक्ट्रॉन) तथा एक नया कण एंटीन्यूट्रिनो (anti-neutrino) उत्सर्जित होता है। इसमें क्षय के पश्चात् प्राप्त नाभिक का भार क्रमांक मूल नाभिक के समान होता है लेकिन परमाणु क्रमांक एक अधिक हो जाता है। उदाहरण के तौर पर–
14
6
C
 → 14
7
N
 + β- + 
ν
e

(ii) पॉजिट्रॉन उत्सर्जन अथवा β+-क्षय (Positron emission or β+-decay)

इस क्षय में मूल नाभिक से एक β+ (अथवा एक पॉजिट्रॉन) तथा एक नया कण न्यूट्रिनो (neutrino) उत्सर्जित होता है। इसमें क्षय के पश्चात् प्राप्त नाभिक का भार क्रमांक मूल नाभिक के समान होता है लेकिन परमाणु क्रमांक एक कम हो जाता है। उदाहरण के तौर पर–
22
11
Na
 → 22
10
Ne
 + β+ + 
ν
e

(iii) इलेक्ट्रॉन परिग्रहण (Electron capture)

इस प्रक्रिया में मूल नाभिक से एक कक्षीय इलेक्ट्रॉन का परिग्रहण करता है तथा न्यूट्रिनों उत्सर्जित करता है। इसमें बनने वाले नये नाभिक की द्रव्यमान संख्या मूल नाभिक के समान होती है तथा परमाणु संख्या एक कम हो जाती है। उदाहरण के तौर पर–
54
25
Mn
 + β- → 54
24
Cr
 + 
ν
e

गामा क्षय (Gamma decay)

जब कोई नाभिक उत्तेजित अवस्था (excitation state) में होता है लेकिन यह अवस्था कोई कण उत्सर्जित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा नहीं दे पाती है तब वह अपनी अतिरिक्त ऊर्जा को निम्नलिखित प्रकार से उत्सर्जित कर अपनी स्थायी अवस्था प्राप्त करता है–

(i) गामा क्षय (Gamma decay)

किसी रेडियोसक्रिय नाभिक के अल्फा और बीटा क्षय के पश्चात् बनने वाला नाभिक सामान्यतः उत्तेजित अवस्था में प्राप्त होता है। यदि इसकी उत्तेजित अवस्ता नया कण उत्सर्जित करने के लिए पर्याप्त नहीं होती है तो यह एक विद्युत्-चुम्बकीय विकिरण उत्सर्जित करता है जिसे γ-किरण के रूप में जाना जाता है। नये नाभिक का द्रव्यमान और आवेश मूल नाभिक के समान होते हैं जिसका एक उदाहरण निम्नलिखित है–
137
56
Ba*
 → 137
56
Ba
 + 
γ






137Ba पर सितारा (*) उत्तेजित अवस्था को निरूपित करता है।

(ii) आंतरिक रूपांतरण (Internal conversion)

आंतरिक रूपांतरण की प्रक्रिया में, उत्तेजित नाभिक अपनी ऊर्जा γ-किरण के रूप में उत्सर्जित करने के स्थान पर अपने आण्विक इलेक्ट्रॉन (सामान्यतः K-कोश अर्थात् N=1) को देता है जिससे रूपांतरित इलेक्ट्रॉन बाहर निकलता है। नाभिक का द्रव्यमान और आवेश इस प्रक्रिया से पूर्व अवस्था के समान रहते रहते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन, नाभिक के स्थान पर इलेक्ट्रॉनिक कक्षा से बाहर निकलता है।

(iii) आंतरिक युग्म रुपांतरण (Internal pair conversion)

यदि नाभिक की उत्तेजित ऊर्जा 1.022 MeV से अधिक है तो नाभिक अपने कूलॉम (Coulomb) क्षेत्र की सहायता से इलेक्ट्रॉन-पोजिट्रॉन युग्म (electron-positron pair) निर्माण की सहायता से मूल अवस्था में आता है। यहाँ कूलॉम क्षेत्र का तात्पर्य नाभिक का विद्युत्-चुम्बकीय क्षेत्र है।
उपरोक्त विवरण को क्षय वृक्ष (decay tree) के रूप में निम्नलिखित चित्र में दर्शाया जा सकता है–

* यहाँ उत्सर्जित होने वाला इलेक्ट्रॉन, परमाण्वीय इलेक्ट्रॉन नहीं होता। यह नाभिक से निकलता है।

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